भीख माँगना धंधा है ?




कितनी शर्मिंदिगी की बात है कि जब लोग ये कहते है कि "भीख माँगने वालों ने भीख माँगने को धंधा बना लिया है। "


कुछ दिनों पहले की ही बात है, जब मैं ऑफिस के काम को खत्म कर अपने घर लौटने पास वाले नुक्कड़ पर खड़ा था। दिनभर ऑफिस की थका देने वाली काम ने मुझे सुस्त कर दिया था, इसलिए मैंने एक खाली सी ऑटो देखकर उसमे बैठ गया। कुछ दुरी तय करने के बाद ऑटो वाले ने ऑटो को पेट्रोल पंप पर तेल भरवाने के लिए रोक दिया। तभी मेरे सामने एक छोटा सा बच्चा आया, उस छोटे से मासूम बच्चे की चेहरे और बालों में धूल ही धूल लगी हुई थी। टीशर्ट और हाफ पेंट पहना हुआ वो लड़का अपनी बहती नाकों को बार-बार पोंछ रहा था। उसकी मासूमियत तथा उसकी हल्की-हल्की मुस्कान को देखकर मैं भी मुस्कुराने लगा। 



उस बच्चे ने मेरी तरफ हाथ को बढ़ाते हुए कुछ पैसे देने का इशारा किया। मैंने भी तुरंत पैसे देने के लिए अपने जेब में हाथ डाला लेकिन कुछ सोचते हुए रुक गया, और उस मासूम से बच्चे से उसका नाम पूछा पहले तो वो शरमाने लगा लेकिन जोर देने पर उस बच्चे ने अपना नाम अक्षय कुमार बताया। 😊 


पिताजी का नाम पूछने पर उसने ढेमा बताया, तभी पीछे से एक बच्ची (उसकी बहन) ने उसको आवाज लगायी तो अक्षय ने अपनी बहन को आँखों से कुछ इशारा किया जो बहुत ही मजेदार था। ये देख मैं हंसने लगा और अपने जेब से 100 रुपया का नोट अक्षय के हाथ में देते हुए कहा की आप दोनों 50-50 रुपये ले लेना। 


वो मासूम-सा बच्चा पैसा लेकर बहुत खुश हो गया और दौड़ता हुआ अपनी बहन (छोटी सी प्रिंसेस 😊) के पास चला गया और उसे 100 रुपये का नोट दिखने लगा, तभी मैंने आवाज लगाई दोनों ने मुड़कर मेरी तरफ देखा, मैंने कहा - ये पैसे आप दोनों के लिए है। दोनों बच्चों ने अपने सिर को हिलाकर इसकी हामी भरी तथा एक दूसरे के कंधे में हाथ रखकर आगे बढ़ा गए।  


लेकिन मेरी ये हरकत देखकर ऑटो वाले भैया और मेरे बगल में बैठा एक व्यक्ति मुझ पर भड़क गये। वो कहने लगे की इन लोगों ने भीख मांगने को धंधा बना लिया है। आपको पैसे नहीं देना चाहिए, इसके माँ-बाप इनको बस पैदा करके छोड़ देते है, तो हमलोग इन्हें पैसे क्यों दे?


इसका जवाब देते हुए मैंने कहा- कोई शौक से भीख नही मांगता, इनकी भी कुछ मजबूरियां है, तभी ये हमारे सामने हाथ फ़ैलाने को मजबूर है। हम ये कहकर इनसे मुँह नहीं मोड़ सकते की इनके माँ-बाप ने इन्हे पैदा करके छोड़ दिया है, क्योंकि इस नन्हे से बच्चे का इसमें क्या कुसूर कि इनका जन्म ऐसे घर में हुआ है जो उनका ललन-पालन भी न कर पाए। इसमें उन प्यारे बच्चों का क्या कुसूर जो इन मजबूरियों भरे दलदल में पैदा हुए है, जिस दलदल ने उनसे उनका बचपन उनकी चाहतें सब कुछ छीन लिया और उन्हें भीख मांगने के लिए विवश कर दिया।  


अरे कौन शौक से भीख मांगना चाहता है, मुझे तो अफसोस है कि मैं केवल 100 रूपया का ही मदद कर पाया। वो लोग मेरी बातों को सुनकर चुप हो गए लेकिन मैंने उनलोगों को समझाया की "जब आप किसी के बारे में अच्छा नहीं बोल सकते तो बुरा भी मत बोलिये।" आपको मदद नहीं करना है, तो मत कीजिये लेकिन कोई उनकी मदद करने आगे आता है, तो उनका टाँग भी मत खींचिये।  




Moral of the Story :

आज के इंसान को इंसान कहना गलत होगा क्योंकि उसके अंदर इंसानियत रत्ती भर भी नहीं बची है। लोग धर्म के बोझ के तले इतने दब चुके है कि उसके अंदर इतनी भी हिम्मत नहीं बची है कि वो धार्मिक होने का दिखावा बंद कर इंसान बनने की शुरुवात करे। अगर धार्मिक होने से ही सब कुछ मिल जाता तो उन बच्चों को किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता। लोग मंदिर, मस्जिद, चर्च, इत्यादि बनाने में लाखो-लाख रूपये खर्च कर देते है लेकिन एक गरीब की मदद नहीं करते। सिर्फ पैसे से ही मदद करने से कुछ नहीं बदलने वाला हमें उन्हें शिक्षित करना होगा तभी उनको भी एक बेहतर जिंदगी मिल पायेगी। 






-By-
Shah Rukh

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