अध्यापक जी : A Helpful man



यह छोटी सी कहानी माहाबालेश्वर के उस अध्यापक जी की है, जो हर दिन संध्या के समय टहलने के लिए निकला करते थे। एक दिन जब उनकी नजर एक छोटे से बालक पर पड़ी जो सड़क के किनारे हाथ जोड़कर लोगों से खाने के लिए पैसे मांग रहा था। लेकिन बेरहम दुनिया वाले उस छोटे से मासूम बच्चे को कुछ पैसे या कुछ खिलाने के बजाय उसे अपने से दूर भगा रहे थे। हाँ... उसके कपड़े बहुत मैले थे, तथा कुछ मैले - कुचैले कपड़े उसके कंधे पर भी थे। इसलिए लोग उससे दूर भाग रहे थे तो कोई गालियाँ दे रहा था




अध्यापक जी को एहसास हो गया की उसने कई दिनों से न खाया है और न स्नान किया है



जब अध्यापक जी उस छोटे से मासूम बच्चे के पास गये तो बच्चा अध्यापक जी से भी पैसे मांगने लगा, कहने लगा - “ बाबु जी बहुत भूख लगी है कुछ पैसे दो न ” अध्यापक जी उस मासूम बच्चे को पास के ही एक होटल में ले गए वहां उस छोटे से बच्चे को भरपेट भोजन कराया



जब बालक जाने लगा तब अध्यापक जी ने उसके कंधे में रखे उसके कपड़ों को उससे लेना चाहा लेकिन वह छोटा सा बच्चा कहने लगा – “ बाबु जी यह कपड़े मैं पहनता हूँ, इसलिए मैं यह कपड़े आपको नही दे सकता ” अध्यापक जी उस मासूम बच्चे की बातों को सुनकर मुस्कुराये और कहा कल फिर यहाँ आना मैं तुम्हे तुम्हारे कपड़े लौटा दूंगा और कई सारी चीजे भी खिलाऊंगा



यह बात सुनकर बच्चा बहुत खुश हुआ और अपने सारे कपड़े अध्यापक जी को देकर चला गया 



अगले दिन सुबह जब अध्यापक जी सोकर उठे तो उनके दिमाग में बहुत सारे सवाल आने लगी कि वह बच्चा कहाँ रहता है, क्या करता है, उसके माँ – बाप है या नही वगैरा – वगैरा .......   



सुबह की स्कूल होने के कारण अध्यापक जी को अपने काम में लग जाना पड़ा और उस बच्चे के मैले कपड़ो को धोकर अध्यापक जी स्कूल चले गए, जब वह स्कूल से आये तो उन्होंने देखा की सारे कपड़े सूख गए है तो अध्यापक जी ने उस बच्चे के सारे कपड़े लिए और उसके लिए कुछ खाने का सामान भी लिया और चल दिए उस ओर जहाँ वो मासूम सा बच्चा कल मिला था



आज भी लड़का वहीँ खड़ा था, अध्यापक जी उनके पास गये और उसे प्यार किया। उसे साफ़ कपड़े पहनने को दिए, खाने की चीजे दी और पूछा कि - तुम यहाँ लोगों से पैसे क्यों मांगते हो? तुम्हारे माँ – पिताजी नही है क्या?

बच्चे ने उत्तर दिया – बाबा नही है केवल माँ है। वो दूसरों के घरों में काम करती है, लेकिन आज कल उसकी तबियत ख़राब होने के कारण मैं यहाँ पर आता हूँ



अध्यापक जी को उस बच्चे पर बहुत दया आ गयी। उन्होंने अपने जेब में हाथ डाला तो जेब में 500 रूपए थे। उन्होंने पूछा की तुम कहाँ रहते हो? बच्चे ने इशारा करते हुआ कहा – उस गाँव में रहता हूँ बाबु जी



अध्यापक जी बच्चे के साथ डॉक्टर को लेकर पहुँच गए उस बच्चे के घर पर वहां अध्यापक जी ने बच्चे की माँ का इलाज करवाया और दवाइयां दे दी। अध्यापक जी ने बच्चे की माँ को कुछ रूपए भी दिए और कहा – आप जल्दी से ठीक हो जाइये और अपने बच्चे का ख्याल रखिये। अध्यापक जी मुस्कुराते हुए कहे कि इस छोटे-उस्ताद का किसी स्कूल में दाखिला करवा दीजिये बहुत शैतान हो गया है ये.......



जाते-जाते अध्यापक जी ने बच्चे से कहा – रोज नहाया करो और साफ़ सुथरा कपड़े पहना करो। क्योंकि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिक का निर्माण होता है अब से तुम उस सड़क के किनारे नही जाओगे अगर कोई भी परेशानी आये तो मुझे बताना मैं पास के ही गाँव के स्कूल में पढ़ता हूँ 



कुछ दिनों के बाद वह बच्चा और उसकी माँ अध्यापक जी के स्कूल में आयी अध्यापक जी को मुसीबत में मदद करने के लिए धन्यवाद करते हुए बच्चे की माँ ने अध्यापक जी को उनके पैसे वापस की और अपने बच्चे का दाखिला उसी स्कूल में करवा दी जब अध्यापक जी ने उस बच्चे को देखा तो उनका दिल खुश हो गया बड़ी-बड़ी आँखों वाला, साफ़-सुथरे कपड़े पहना हुआ वह बच्चा स्कूल के बगीचे में खेल रहा था जब बच्चे ने अध्यापक जी को देखा तो दौड़ता हुआ आया और अध्यापक जी के पैरो छूकर आशीर्वाद लिया






" एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिक का निर्माण होता है "

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2 Comments

  1. भाई वाकई बहुत ही अच्छी स्टोरी है. लिखने का तरीका भी बहुत शानदार है।

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    1. धन्यवाद Mahtab जी, आपने हमारे इस Motivational Story को पढ़ा और समझा. हमारा प्रयास है कि हम उन बच्चो की मदद कर सके जो अपना बचपन जी नही पाते है और उन मासूम बच्चों के जीवन में रंगों और रौशनी की फुहार भर सके.

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