“मानवीय संवेदनाओं को झकझोरती एक दुःख
भरी कहानी”
सर्दी की एक रात रोहित जी थक-हार कर काम से घर वापस जा रहे थे, कार
में शीशे बंद होते हुए भी... जाने कहाँ से ठंडी-ठंडी हवाएं अन्दर आ रही थी। रोहित जी उस सुराख़ को ढूंढने का प्रयास किये जहाँ
से ठंडी हवाएं अन्दर आ रही थी लेकिन वो नाकामयाब रहे.....
कड़ाके के ठण्ड में आधा घंटे ड्राइव करने के बाद घर
पहुंचे तो रात के बारह बज चुके थे....
बहुत ठण्ड होने के कारण वह घर के बहार कार से आवाज
देने लगे कि कोई आकर गेट खोल देलेकिन कोई नही आया, बहुत देर उन्होंने हॉर्न भी
बजाया... शायद सभी सो चुके थे। दस मिनट के बाद उन्होंने खुद ही कार से उतर कर गेट
खोले। सर्द रात के सन्नाटे में उनकी जूतों की आवाज साफ़
सुनाई दे रही थी। कार अन्दर कर जब वह गेट बंद करने के लिए आये तो
उन्होंने देखा कि एक 8 – 10 साल का बच्चा, अपने कुत्ते के साथ उनके घर के सामने
फूटपाथ पर सो रहा था। वह एक अधफटी चादर ओढ़े हुए था।
उसको देखकर उन्होंने उसकी ठण्ड महसूस करने की कोशिश
की तो एकदम सकपका गये। उन्होंने Monte Carlo की महंगी जैकेट पहनी हुई थी फिर भी वो ठण्ड को कोस
रहे थे... और ‘बेचारा वो बच्चा’ रोहित जी ये सोच ही रहे थे की तभी वो कुत्ता चादर
छोड़ उनकी कार के नीचे आकर सो गया। उनके कार की इंजन गरम थी शायद
उसकी गरमाहट कुत्ते को सुकून दे रही थी??
उन्होंने कुत्ते को भागने के बजाये उसे वही सोने
दिया और बिना अधिक आहाट किये पीछे दरवाजे का ताला खोलकर घर में चला गया। उन्होंने देखा की सब के सब सो रहे थे, इसलिए वो भी
अपने कमरे में चले गये।
जैसे ही उन्होंने सोने के लिए रजाई उठाई उस बच्चे का
ख्याल मन में आ गया सोचा,......
“मैं कितना स्वार्थी हूँ मेरे पास
विकल्प के तौर पर रजाई, कंबल, चादर है पर उस बच्चे के पास अधफटी चादर भर है, फिर
भी वह अधफटी चादर को भी उस कुत्ते के साथ बाँट कर सो रहा है, और हम घर में फालतू पड़े
पुराने चादर और कम्बल को भी किसी को देना गवारा नही समझते है”
यही सोचते – सोचते न जाने कब उनकी आँख लग गयी. अगले
दिन जब रोहित जी उठे तो उन्होंने देखा बहार भीड़ लगी हुई है, बहार निकले तो किसी को
बोलते हुए सुने कि
“अरे वो चाय बेचने वाला लड़का सोनू कल
रात ठण्ड से मर गया है”
उनकी पलकें कांपी और आंसू की एक बूँद उनके आँखों से
छलक गई उस बच्चे के मौत से किसी को कोई फर्क नही पड़ा बस वो कुत्ता अपने नन्हे
दोस्त के बगल गुमशुम बैठा था, मानो उसे उठाने की कोशिश कर रहा हो.......
दोस्तों, यह कहानी केवल कहानी नही है
ये आज के इंसान की सच्चाई है। मानव से अगर मानवता चली जाये तो वह मानव
नही रहता है दानव बन जाता है, और शायद हममें से ज्यादातर लोग दानव बन चुकें है।
हम अपने लिए पैदा होते है, अपने लिए
जीते है और अपने लिए ही मर जाते है। ये भी कोई जीना
है???
चलिए एक बार फिर से मानव बनाने का
प्रयास करते है, अपने घर में पड़े बेकार कपडे जरुरत मंदों को देते है। चलिए कुछ गरीबों को खाना खिलते है,
चलिए किसी गरीब बच्चे को पढ़ाने का संकल्प लेते है। चलिए एक बार फिर मानव बनते है।
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Special thanks to Rohit Saini Ji
4 Comments
मैंने पहले ही कह चूका हू, ये जीवन एसा ही है !!
ReplyDeleteजीवन ब्रह्मांड की एक भयानक भूल है !!!
ReplyDelete"एक भौतिक ब्रह्मांड कभी भी जीवन का निर्माण नहीं कर सकता है "
ReplyDeleteसेवा परमो धर्मः
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