यह बात उन दिनों की है जब अंगुलिमाल नामक डाकू अपने साथियों के साथ कौशलराज में आतंक मचाया हुआ था I जो भी व्यक्ति उस भयानक
जंगल के समीप या उस जंगल से गुजरने का साहस करता, वह उसे लूट कर उसकी हत्या कर
देता I फिर उसकी की एक अंगुली काटकर अपनी माला में डाल लेता I इस प्रकार उसके गले में
हजारों अँगुलियों की माला बन गयी थी, जिससे वह और भी अधिक भयानक प्रतीत होता था I कौशलराज के नागरिक रात को
ही नही, बल्कि प्रातः सूर्य प्रकाश में भी उस जंगल की ओर जाते हुए डरते थे I
प्रजा को दुखी देखकर कौशलराज के राजा प्रसेनजित ने अपनी सेना को अंगुलिमाल का वध
करने के लिए भेजा, परन्तु अंगुलिमाल ने उन सभी को मार डाला और उनकी अंगुलियाँ
काटकर अपनी माला में पिरो लीं I
जब महात्मा बुद्ध
भ्रमण करते हुए कौशलराज पहुंचे, तो उन्हें अंगुलिमाल के बारे में ज्ञात हुआ कि किस
प्रकार उसने सम्पूर्ण प्रजा को भयग्रस्त कर रखा है I महात्मा बुद्ध के दर्शन के
लिए जो भी श्रद्धालु आता, वह महात्मा बुद्ध को अंगुलिमाल के अत्याचारों की कहानी
ही सुनाता था I अंगुलिमाल के
अत्याचारों की कहानी सुनकर बुद्ध बहुत व्यथित हो गये I उन्होंने उसी रात उस भयानक
जंगल में जाने का निर्णय लिया, जिसमे अंगुलिमाल रहता था I
रात होते ही महात्मा बुद्ध उस जंगल में प्रवेश
कर गये और बहुत ही शांत भाव एवं निडरता से आगे बढ़ने लगे I तभी उनके कानों में एक
कर्कश आवाज सुनाई दी, “ ठहर जा ”
यह सुनकर भी महात्मा बुद्ध आगे बढ़ते रहे I
पुनः आवाज आयी, “ ठहर
जा ”
इस बार महात्मा बुद्ध ठहरे और बोले, “ मैं तो ठहर गया अंगुलिमाल, तू कब ठहरेगा? ”
एक क्षण के लिए चारों ओर शांति छा गयी I अंगुलिमाल हतप्रभ रह गया कि
ऐसा कौन-सा व्यक्ति आ गया, जो उसके सामने बोलने की हिम्मत कर रहा है ? वह झाड़ियों
को चीरता हुआ सामने आया I
महात्मा बुद्ध ने उसे देखा I उसने गले में कटे हुए
अँगुलियों की माला पहन रखी थी, जिससे वह राक्षस प्रतीत होता था I उसे देखकर महात्मा बुद्ध ने
निडरता से कहा, “ बोल, तू कब ठहरेगा ? ”
अंगुलिमाल ने कहा, “
अरे सन्यासी, शायद तू जानता नही कि मैं कौन हूँ I ”
महात्मा बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, “ मैं तो तुझे पहचान गया हूँ अंगुलिमाल, परन्तु तू नही
जानता कि तू कौन है I बोल, तू कब ठहरेगा ? ”
अंगुलिमाल की बुद्धि और शरीर जड़
हो गये I वह एकटक महात्मा
बुद्ध की ओर देखता रहा I उससे तलवार भी नही
उठायी जा रही थी I उसका सिर अपने आप ही
बुद्ध की ओर झुका जा रहा था I वह सोच में पड़ गया कि यह सन्यासी कौन है, जिसका मुख इतना
सुन्दर है, जिसकी वाणी में इतनी मधुरता है, जिसकी आँखों से प्रेम की वर्षा हो रही
है, इसमें न घृणा है न ही भय I
उसको सोच में पड़े देखकर महात्मा बुद्ध ने कहा, “ क्या सोच रहे हो अंगुलिमाल ? फेंक दो यह तलवार और यह
अमंगलजनक माला I मेरे पास आओ अंगुलिमाल..I ”
महात्मा बुद्ध का वह प्रेम और अपनापन देखकर
अंगुलिमाल चुम्बक की भांति उनकी ओर खींचता हुआ उनके चरणों में जा गिरा I उसका दिल भर आया और उसके
नेत्रों से अश्रु की धारा बहकर महात्मा बुद्ध के चरणों को धोने लगी I वह रोते हुए बोला, “ मुझे संभालिये भगवन् I मेरा उद्धार
कीजिये I ”
महात्मा बुद्ध ने उसे उठाया और उसके आंसू पोंछे
फिर उसे अपना शिष्य बना लिया I और आगे चलकर अंगुलिमाल बहुत बड़ा सन्यासी बना, जो अहिंसका के
नाम से प्रसिद्ध हुआ I
" इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती
है कि कोई भी इन्सान कितना ही बुरा क्यों न हो, वह बदल सकता है I दोस्तों,
अंगुलिमाल बुरे का एक प्रतीक है, और हम सब में छोटे-बड़े रूप में कोई न कोई बुराई
है I जरुरत इस बात
की है हम अपने अन्दर की बुराइयों को पहचाने और ख़त्म करें I "
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