"अपने भाग्य के निर्माता आप है"




दोस्तों, आज मैं एक ऐसे व्यक्ति की कहानी आपलोगों को बताने जा रहा हूँ जिसने अपने अन्दर की बुराइयों से लड़कर खुद पर जीत हासिल की

अपने भाग्य के निर्माता आप है
आपने यह लाइन तो जरुर सुनी होगी कि “जीतना तब आवश्यक हो जाता है जब लड़ाई अपने आपसे हो”। यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है। पनामा का एक ऐसा युवक जिसने संघर्ष करके अपने आप पर जीत हासिल की। यह आपकी भी कहानी हो सकती है क्योंकि इस कहानी में जो भाव निहित है वह एकदम सत्य है। “यह अँधेरे से निकलकर उजाले की ओर बढ़ने की कहानी है।” यह कहानी इस आशा को जगाती है कि आप परिस्थितियों के गुलाम नही है, न ही आप पर कोई जीत हासिल कर सकता है क्योंकि आप अपने भाग्य के निर्माता है।


मैक के अन्दर हर वो बुराई थी जो किसी भी इन्सान के लिए आत्मघाती हो सकता है। इसे भाग्य का दोष कहें या नियति का क्रूर मजाक जो उसके माता – पिता बचपन में ही चल बसे। नाते रिश्तेदार महज नाम के लिए थे। जिसके कारण उसे कभी न अच्छा माहौल और न ही सही मार्गदर्शन मिला। मैक का कोई दोस्त भी नही था अगर उसके साथ कोई था तो वह थी शराब, धुम्रपान, बुरी संगती और बुरे लत।


इसी बुरे लत ने उसे चोरी करना भी सीखा दिया। पर बुरे काम से किसी का भला हुआ है जो मैक का होता। मैक को चोरी करने के जुर्म में जेल हो गयी। अब आप इस बात का अंदाजा तो लगा ही सकते कि जेल का जीवन कैसा होता है? और इसी जेल के जीवन का असर मैक पर भी दिखने लगा। उसे अनिद्रा, सिरदर्द, कब्ज तथा कई मानसिक रोगों ने अपने गिरफ्त में कर लिया। एक बार उसे लगा कि यह सब समस्या खाने में अनियमिता के वजह से हो रही है पर उसने इस बात को भी नजरअंदाज कर दिया।


एक दिन मैक घूमते – घूमते जेल के बुचडखाने के तरफ से गुजरा। वहां पर उसने मरे हुए पशुओं की लाश को उलटे लटका देखा। इस दृश्य से उसे बहुत गहरा झटका लगा और उसी दिन उसने मांसभक्षण को त्यागने का संकल्प ले लिया। जेल के अन्दर रहकर अपने संकल्प का पालन करना उसके लिए कठिन था परन्तु उस मरे हुए पशुओं को देखने का उसके मन पर इतना गहरा असर था कि जहाँ अन्य कैदी शराब और मांस पर जी रहे थे वहीँ मैक ताज़ा और सुपाच्य भोजन लेने का प्रयास कर रहा था।


मैक जो कि अब ताज़ा और सुपाच्य आहार खा रहा था उसका परिणाम धीरे – धीरे  उसके शरीर पर दिखने लगा। स्वस्थ शरीर के साथ – साथ उसका दिमाग भी दिशा की ओर संकेत दे रहा था। अभिजीत दत्ता ने सही कहा है – “अगर आप जीवन में कुछ भी नही कर पा रहे है, तो केवल पुस्तकें पढिये आपको जीने का आधार मिल जायेगा।” और संयोग से मैक के हाथ एक योग की पुस्तक लग गई। अब वह नियमित पौष्टिक आहार के साथ – साथ किताब से सीखकर योग भी करने लगा।


उसे इन सब से अपने अन्दर एक गंभीर आंतरिक परिवर्तन की अनुभूति हुई। फलस्वरूप वह और अधिक इच्छाशक्ति से इनका पालन करने लगा लेकिन वह अभी भी सिगरेट पीना नही छोड़ पाया था और एक दिन में कम से कम दो – तीन पैकेट सिगरेट भी पिता था। उसे इस बात का अंदाजा हो गया था कि वह इनका सेवन कर अपने फेफड़ों को बर्बाद कर रहा है।


उसने स्वयं से एक संकल्प किया कि धीरे – धीरे ही सही पर वह अपनी इस बुरी लत को भी छोड़ देगा। शुरू में इसे छोड़ने में काफी कठनाइयों का सामना करना पड़ा लेकिन उसने हार नही मानी और इस बुरी लत से छुटकारा पाने में सफल रहा। मैक की अच्छी आदतों की वजह से एक दिन ऐसा भी आया कि वह शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं अध्यात्मिक हर स्तर पर वह स्वस्थ एवं संतुलित अनुभव करने लगा लेकिन एक कमी वह अभी भी अपने अन्दर महसूस कर रहा था और वह कमी थी नकारात्मक विचारों की। इसे दूर करने के लिए वह अपने नकारात्मक सोच एवं विचारों को लिखित रूप में अपने पास रखने लगा और प्रतिदिन संकल्प की तरह पढता रहा।


अपने सोच और विचारों को पढने से उसे इस बात का अहसास हुआ कि उसके अन्दर जो भी बुराइयाँ है उनका जिम्मेदार तो वह स्वयं ही है। अपने जीवन में अब तक जो दुसरे व्यक्तियों के साथ अन्याय करता था उसे अनुभव होने लगा कि “वह सब गलत था।” इन सब बातों का एहसास होते ही उसके मन में शांति की एक अद्भुत लहर दौड़ने लगी। पहली बार उसे यह प्रतीत हो रहा था कि “बाहरी जगत का परिवर्तन आंतरिक विकास के अनुरूप होता है


मैक के अन्दर आये बदलाव को देखकर उसकी सजा को माफ़ कर दिया गया और  उसे रिहा कर दिया। लेकिन उसे इस बात की अत्यधिक ख़ुशी थी कि वह अपनी बुरी आदतों से आजाद हो चूका था। जीवन का अनुभव उससे कह रहा था “बाहरी स्वतंत्रता की अपेक्षा आंतरिक स्वतंत्रता अधिक मूल्यवान हैं।”

यह कहानी मैक की थी लेकिन थोड़े बहुत बदलाव के साथ यह कहानी किसी के भी जीवन की हो सकती है। गलत परवरिश, बुरा संगति, दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों के दंश की मार से पीड़ित व्यक्ति दूसरों को दोष देने के बजाय, इसकी पूरी जिम्मेदारी स्वयं पर लें तो यकीन मानिये आपने पहली सीढ़ी ऐसे ही चढ़ ली। यही सोच आपको आत्मसुधार एवं निर्माण के बाकी सीढ़ी चढ़ने में मदद करेगा। यह सीढ़ी आप खुद चढ़कर मंजिल तक पहुंचेंगे, जिसमें “आप अपने भाग्य के निर्माता खुद है” कि उक्ति को “रुमाणित” होते खुद देख सकेंगे।

By
LIKE ON FACEBOOK : Achhivichaar



Post a Comment

3 Comments

  1. अभी मेरा हाल भी मैक की तरह ही है !!!! नकारात्मक सोच एवं विचारों से भरा हुआ !!!

    ReplyDelete
  2. तुम भी मैक की ही तरह नकारात्मक सोच एवं विचारों से निकल सकते हो, बस वही करो जो मैक ने किया है!!!!

    ReplyDelete