माँ का संघर्ष






कंकवाड़ी गाँव के निवासी जमुनालाल के घर एक बच्चे ने जन्म लिया उसकी माँ ख़ुशी से झूम उठी, ये जाने बिना की उसे “बेटा हुआ है या बेटी” क्योंकि हर माँ को अपने बच्चे से प्यार होता है, चाहे वो बेटा हो या बेटी पर जब इसकी खबर उसके पिता और अन्य घर वाले को मिली कि उनके घर एक लड़की ने जन्म लिया है, तो वे लोग बच्ची और उसकी माँ को अस्पताल में ही छोड़कर घर लौट गये क्योंकि घर वाले खुश नही थे की उनके घर एक लड़की ने जन्म लिया है घर वालों के द्वारा की गयी हरकत की वजह से बच्ची की माँ के दिल को बहुत ठेस पहुंचा, फिर भी दुःख तकलीफ को झेल कर किसी तरह 5 साल अपने ससुराल में गुजार दिए



अब गुड़िया भी बड़ी हो गयी थी, वो भी अपनी माँ की जज्बातों को समझने लगी थी जब भी अपनी माँ को परेशानियों में देखती तो अपनी माँ की मदद करती, जब भी उसके बाबा उसकी माँ को मरते तो वो बीच में आ जाती और अपनी माँ को मरने से रोकती. उसकी माँ उसे बार-बार मना करती, तू हम दोनों के झगड़ो में मत आया कर लेकिन गुड़िया कहाँ मानने वालों में से थी अपनी माँ को मार खाता देख वो हमेशा अपनी माँ को बचाने बीच में आ जाती



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एक दिन गुड़िया की माँ ने गुड़िया के बाबा से बोली “गुड़िया अब बड़ी हो गयी है इसका दाखिला स्कूल में करवा दीजिये” ये बात सुनते ही गुड़िया के बाबा बहुत क्रोधित होकर कहने लगे “कोई जरुरत नही है गुड़िया को स्कूल जाने की वो घर पर ही रहेगी और घर के ही काम सीखेगी.” गुड़िया भी वहीँ थी वो अपने बाबा से जिद्द करने लगी “मुझे भी स्कूल जाना है” उसके बाबा गुस्से में आकर गुड़िया को ही मारने लगे और कहने लगे “तू स्कूल नही ससुराल जाएगी” गुड़िया के साथ ऐसा व्यवहार होता देख उसकी माँ से रहा नही गया और वो भी अपने पति से झगड़ बैठी अंत में गुड़िया की माँ ने निश्चय किया कि वो अब अपने पति के घर में नही रहेगी क्योंकि वो अपनी बच्ची की जिंदगी को अपनी नरक जैसे जिंदगी जैसा नही बनाना चाहती थी



इस तरह वो अपने पति के घर को छोड़ उसी गाँव में किराये के घर में रहने लगी और गुड़िया का दाखिला अपने गाँव के ही सरकारी स्कूल में करवा दी अपनी बच्ची को पढ़ने तथा घर गृहस्थी को चलाने के लिए वो दिन भर दुसरो के घरों में काम करती तो उससे उसे कुछ पैसे हो जाने लगे उन पैसों से वो गुड़िया को अच्छे-अच्छे चीज़े खिलाती, गुड़िया को अच्छे टीचर के पास ट्यूशन भेजती, कॉपी किताब खरीद कर देती



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कुछ सालों के बाद उनके खर्चे बढ़ने लगे तब गुड़िया की माँ ने दुसरो के खेतों में काम करना शुरु कर दी जिससे उसे काफी पैसे मिलने लगे लेकिन वो खेत में काम कर बहुत थक जाती थी जब वो खेत से आती तो गुड़िया अपनी माँ को ठंडा पानी पिलाती और आराम करने को कहती और गुड़िया खुद रात का खाना बनती कभी-कभी तो गुड़िया अपनी माँ की मदद करने खेत पहुँच जाती इस तरह उनकी जिंदगी सुखमय ढंग से बीत रही थी



ऐसे ही कई साल बीत गये और हमेशा अपने क्लास में प्रथम आने वाली गुड़िया अब दसवीं की परीक्षा की तैयारियों में जुट गयी जब रिजल्ट आया तो पता चला की वो अपने जिले की 2nd Topper हुई है उसकी माँ का ख़ुशी का ठिकाना न रहा उसने पुरे गाँव में मिठाईयाँ बटवाई और गाँव वालों के पूछने पर बताई की उसकी गुड़िया दसवीं की परीक्षा में पुरे जिले में दूसरा स्थान प्राप्त किया है





ये बात सुनकर गाँव वाले आश्चर्य हो गये उन्होंने कहा “ऐसा कैसे हो सकता है” यह बात सुनकर गुड़िया की माँ ने कहा हमारी गाँव की लड़की को स्कूल नही भेजा जाता है क्योंकि गाँव वालों को लगता है कि लडकियाँ केवल खाना बनाने और पति की सेवा करने के लिए ही पैदा होती है, अगर किसी के घर लड़की पैदा हो गयी तो मानो कोई पहाड़ टूट पड़ा हो लेकिन मैंने अपने बेटी को पढ़ाने का फैसला किया था और आज वो अपने गाँव का नाम रौशन कर रही है इस कामयाबी के बाद गुड़िया ने कभी पीछे मुड़कर नही देखी



कुछ सालों के बाद गुड़िया ने गाँव में एक संस्था खोली और हर लड़की को शिक्षा दिलाने की कोशिश शुरू कर गाँव वालों को जागरूक करने लगी. इसी तरह एक माँ का संघर्ष सफल हुआ





“लड़का हो या लड़की सबको बराबर का अधिकार मिलना चाहिए”


 By
Shah Rukh
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2 Comments

  1. उसने भी एक लड़की को जन्म दिया है !!!!!!

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  2. शहरी लड़कियों की तुलना में गाँव की लड़कियों को अधिक कठनाईयों का सामना करना पड़ता है.

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