"प्रेरक प्रसंग"

Gandhi ji
राष्ट्रपिता 

गाँधी जी के जीवन के तीन प्रेरक प्रसंग 
पहला प्रसंग 

गाँधी जी देश भर में भ्रमण कर चरखा संघ के लिए धन इकठ्ठा कर रहे थे अपने दौरे के दौरान वे उड़ीसा में किसी सभा को संबोधित करने पहुंचे उनके भाषण के बाद एक बूढी गरीब महिला खड़ी हुई, उसके बाल सफ़ेद हो चुके थे, कपडे फटे हुए थे और वह कमर से झुक कर चल रही थी किसी तरह वह भीड़ से होते हुए गाँधी जी के पास तक पहुँची


मुझे गाँधी जी को देखना है उसने आग्रह किया और गाँधी जी तक पहुँच कर उनके पैर छुए फिर उसने अपने साड़ी के पल्लू में बंधा एक तांबे का सिक्का को निकाल कर गाँधी जी के चरणों में रख दी गाँधी जी ने सावधानी से सिक्का उठाया और अपने पास रख लिया उस समय चरखा संघ का कोष जमनालाल बजाज संभाल रहे थे उन्होंने गाँधी जी से वो सिक्का माँगा, लेकिन गाँधी ने उसे देने से माना कर दिया


मैं चरखा संघ के लिए हजारों रूपये के चेक संभालता हूँ, फिर भी आप मुझ पर इस सिक्के को लेके यकीन नही कर रहे है जमनालाल जी ने हँसते हुए कहा


यह तांबे का सिक्का उन हजारों से कई ज्यादा ही कीमती है गाँधी जी बोलें



यदि किसी के पास लाखों हैं और वो हज़ार-दो हजार दे देता है तो उसे कोई फर्क नही पड़ता है लेकिन ये सिक्का शायद उस औरत कि कुल जमा-पूंजी थी उसने अपना सारा धन दान दे दिया कितनी उदारता दिखाई उसने, कितना बड़ा बलिदान दिया उसने! इसीलिए इस तांबे के सिक्के का मूल्य मेरे लिए करोड़ो से भी अधिक है





गाँधी जी के जीवन के तीन प्रेरक प्रसंग
दूसरा प्रसंग 

रात बहुत काली थी और मोहन डरा हुआ था हमेशा से ही उसे भूतों से डर लगता था वह जब भी अँधेरे में अकेला होता उसे लगता की कोई भूत आस-पास है और कभी भी उसपे झपट पड़ेगा, और आज तो इतना अँधेरा था कि कुछ भी साफ़ नही दिख रहा था ऐसे में मोहन को एक कमरे से दूसरे कमरे में जाना था


वह हिम्मत कर के कमरे से निकला पर उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा और चेहरे पर डर के भाव आ गए घर में काम करने वाली रम्भा वहीँ दरवाजे पर खड़ी यह सब देख रही थी

क्या हुआ बेटा? उसने हँसते हुए पूछा
मुझे डर लग रहा है दाई मोहन ने उत्तर दिया
डर, बेटा किस चीज का डर?
देखिये कितना अँधेरा है, मुझे भूतों से डर लग रहा है मोहन सहमते हुए बोला

रम्भा ने प्यार से मोहन का सर सहलाते हुए बोली, जो कोई भी अँधेरे से डरता है वो मेरी बात सुने, राम जी के बारे में सोचों और कोई भूत तुम्हारे निकट आने कि हिम्मत नही करेगा कोई तुम्हारे सिर का बाल तक नही छू पायेगा राम जी तुम्हारी रक्षा करेंगें

रम्भा के शब्दों ने मोहन को हिम्मत दी राम नाम लेते हुए वो कमरे से निकला और उस दिन से मोहन ने कभी खुद को अकेला नही समझा और भयभीत नही हुआ उसका विश्वास कि जब तक राम उनके साथ है उसे डरने की कोई जरुरत नही





गाँधी जी के जीवन के तीन प्रेरक प्रसंग
तीसरा प्रसंग 

कलकत्ता में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़के हुए थे तमाम प्रयासों के बावजूद लोग शांत नही हो रहे थे ऐसी स्थिति में गाँधी जी वहाँ पहुँचे और एक मुस्लिम मित्र के यहाँ ठहरे उनके पहुँचने से दंगा कुछ शांत हुआ लेकिन कुछ ही दिनों में फिर से आग भड़क उठी, तब गाँधी जी ने आमरण अनशन करने का निर्णय लिया और 31-Aug-1947 को अनशन पर बैठ गए इसी दौरान एक दिन एक अधेड़ उम्र का आदमी का आदमी उनके पास पहुँचा और बोला, मैं तुम्हारी मृत्यु का पाप अपने सर पर नही लेना चाहता, लो रोटी खा लो

और फिर अचानक ही वह रोने लगा, मैं मारूंगा तो नर्क जाऊँगा

क्यों?, गाँधी जी ने विनम्रता से पूछा

क्योंकि मैंने एक आठ साल के मुस्लिम लड़के की जान ले ली

तुमने उसे क्यों मारा?, गाँधी जी ने पूछा

क्योंकि उन्होंने मेरे मासूम बच्चे को जान से मार दिया आदमी रोते हुए बोला

गाँधी जी ने कुछ देर सोचा और फिर बोले, मेरे पास एक उपाय है

आदमी आश्चर्य से उनकी तरफ देखने लगा उसी उम्र का एक लड़का खोजो जिसने दंगों में अपने माता-पिता खो दिए हों, और उसे अपने बच्चे की तरह पालो, लेकिन एक चीज सुनिश्चित कर लो की वह एक मुस्लिम होना चाहिए और उसी तरह बड़ा किया जाना चाहिए
                 


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6 Comments

  1. बहुत ही अच्छी प्रसंग है ये हमारे राष्ट्रपिता गाँधी जी की.

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  2. गाँधी जी के प्रसंग अच्छे हैं

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!!!

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  3. वाह क्या बहुत अच्छी प्रसंग है

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