"बेटी हुई है"






अरे, मोहन के बहु को बेटा हुआ है का?
नाही मौसी बेटी हुई है
हाय रे भगवान इ का हो गया..!!!!!!!


इस तरह ये बात पुरे विलासपुर गांव में फ़ैल गयी मोहन के घर वाले भी खुश नही थे की उनके घर में फिर से एक बेटी ने जन्म लिया है एक कहावत है न जहाँ खुशी न हो वहाँ कभी प्रेम या ममता नही होती है



वह छोटी-सी बच्ची जो अभी-अभी इस दुनिया में आयी है उसे तो ये भी नही पता कि वो एक ऐसी दुनिया में आ गयी है जहाँ बेटी के लिए प्रेम और ममता कुछ भी नही होती. इसी तरह से छोटी-सी बच्ची पूर्वा की परवरिश भी बिना प्यार और ममता के होने लगा हमेशा पूर्वा एक बिस्तर में पड़ी रोती रहती, जब उसकी माँ को फुरसत मिलती तब वो आती और उसे चुप कराती दुलार करती लेकिन लोगों के तानों से माँ का भी दिल अपने बच्चे के प्रति कठोर हो गया



beti hui hai



अभी 2 वर्ष भी नही हुए थे पूर्वा के आने से और उनके घर एक और नन्हा मेहमान आया लेकिन इस बार बेटी नही बेटा हुआ था फिर क्या था माँ-बाप से लेकर घर वाले, गांव वाले सभी खुश थे मोहन ने पुरे गांव में मिठाई बंटवाई, गांव वाले भी मोहन के बेटे को देखने के लिए आने लगे अब तो पुरवा की माँ को अपने बेटे के अलावा और कोई दिखाई नही देता था हमेशा वह अपने बेटे को प्यार करती, दुलार करती लेकिन जब पूर्वा अपने माँ के पास आती तो उसकी माँ उसे डांटकर भगा देती


हमेशा डांट मार के साथ पूर्वा भी बड़ी होने लगी, जब वह 4 वर्ष की हो गयी तब वो घर के दुव्यवहार के कारण गांव के बच्चों के साथ खेलती रहती, घुमती रहती, जब वह घर जाती तो उसकी माँ उसको मारती और घर के काम करवाती


beti hui hai



6 वर्ष के होते-होते बर्तन धोना, झाड़ू लगाना, खाना बनाना इत्यादि पूर्वा का हर दिन का काम हो गया था, उसके उम्र के बच्चें खेलते थे, पढ़ते थे, स्कूल जाते थे लेकिन पूर्वा एक अलग ही तरह की जीवन जी रही थी वो हमेशा माँ-बाबा से कहती की मैं भी स्कूल जाउंगी, मैं भी पढ़ूंगी लेकिन हमेशा उसे ये ही शब्द सुनने को मिलते – तू क्या करेगी पढ़ लिख कर तू घर के ही कामों में मन लगा, शादी के बाद तुझे यही करना है लेकिन जब भी पूर्वा गांव के बच्चों को स्कूल जाते हुए देखती तो वो रोने लगती पर मार के डर से वो घर के कामकाज में ही लगी रहती







कुछ वर्षों के बाद उसके छोटे भाई का दाखिला स्कूल में करा दिया गया ये देखकर पूर्वा को बहुत गुस्सा आया अपना विरोध जताते हुए पूर्वा अपने माँ-बाबा से बोली – जब मैं पढ़ लिख नही सकती, स्कूल नही जा सकती तो इसको क्यों भेज रहे हो स्कूल?


बाबा ने कहा – ये लड़का है, पढ़ेगा लिखेगा तो नौकरी करेगा, हमारी बुढ़ापे में देखभाल करेगा लेकिन तू एक लड़की है जितना भी पढ़ ले तुझे तो ससुराल जाकर घर के कामकाज ही करने है

पूर्वा बोली – बाबा क्या मैं पढ़ लिखकर नौकरी नही कर सकती? क्या मैं आप लोगों की सेवा बुढ़ापे में नही कर सकती?

पूर्वा की माँ ने इसका उत्तर देते हुए बोली – लड़की परायी धन होती है, वो जितना भी पढ़ लिख ले लेकिन बुढ़ापे में वो अपने माँ-बाबा की देखभाल नही कर सकती वो एक लड़का ही कर सकता है

फिर पूर्वा ने पूछा – क्या माँ भगवान ने ऐसे नियम उपर से बना कर भेजे है? एक लड़की ही परायी धन क्यों होती है एक लड़का क्यों नही? 
     

पूर्वा के माँ के पास इसका कोई उत्तर नही था, इसलिए उन्होंने दो थप्पड़ लगा दी पूर्वा को इस तरह पूर्वा घुट-घुट कर जीवन जीने लगी, हमेशा वो किसी सोच में डूबी रहती







कुछ ही वर्षों के बाद पूर्वा की शादी दूर के गांव में करा दी गयी उस वक्त उसकी उम्र केवल 15 वर्ष थी पूर्वा को लगा की अब वो उस दुःख भरी नरक से बाहर निकल चुकी है, किन्तु उसका भ्रम बहुत जल्द ही टूट गया जब उसे पता चला की उसका पति शराबी है प्रायः उसका पति शराब पीकर उसके साथ मारपीट करता, गालियाँ देता उसके ससुराल वाले भी उलट पूर्वा को ही डांटते



एक दिन तो मामला इतना बढ़ गया की पूर्वा ने अपने आप पर मिटटी का तेल छिड़क कर आग लगा ली और अपने नरक जैसे जीवन का अंत कर दी




दोस्तों, हमारे देश के प्राचीन इतिहास से पता चलता है कि हमारे देश में नारियों को देवी का रूप माना गया है, हमेशा ही लड़कियों और लड़कों को बराबरी का दर्ज़ा मिला तो आज क्या हो गया है हमारे देश को?


क्यों इस तरह कि अभद्र व्यवहार किये जा रहे है बेटियों के साथ?
क्यों लड़कियों के पढ़ने पर रोक लगाई जा रही है?
क्या हम अपनी प्राचीनतम इतिहास को भूल गए है?
क्या बेटियाँ हमारे लिए बोझ के समरूप है क्या?
क्या इसका कारण गरीबी तो नही?
अगर इसका कारण गरीबी है तो ये केवल लड़कियों के साथ ही क्यों है? लड़कों के साथ क्यों नही?


ऐसी परिस्थितियों का मूल कारण अशिक्षा है, लेकिन हम ऐसा भी नही कह सकते है की गरीबी से इसका कोई नाता नही है गरीबी भी बहुत हद तक ऐसी स्थितियों के उत्पन्न होने के कारण है



केवल किताबी पाठ पढ़ लेने से कोई शिक्षित नही हो जाता, जब तक उन्हें पता न चले की सही और गलत में फर्क क्या है







शिक्षा वो है जो हमे अन्दर से कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित करें और जो ऐसी सोच रखते है वो शिक्षित है 


इसलिए जो शिक्षित है उनका ये भी फ़र्ज़ बनता है कि अपनी शिक्षा को दूसरों में बांटे और उन सभी को शिक्षित करे जो शिक्षा से अछूते है। तब जाकर हमे इस तरह के घृणात्मक कु-कृतियों से छुटकारा मिल पायेगा। तब हम फक्र से कह सकेंगे की हम ऐसी समाज में रहते है जहाँ लड़कियों को आजादी है अपने भविष्य को तय करने की







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Special Thanks to Abhijeet Dutta



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3 Comments

  1. आखिर तुमने मेरे मन की बात लिख ही डाली!!!!!!!!

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद!!

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    1. शुक्रगुजार तो मैं आपका हूँ....

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